नवरात्रि में कन्या पूजन क्यों?
नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है. नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्तों का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं.
कन्या पूजन में 9 कन्याओं के साथ एक बालक का पूजन करना उत्तम माना गया है। लेकिन अगर संभव नहीं हो तो कम से कम दो कन्याओं को जरूर भोजन कराएं।
अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं का पूजन प्रायः सर्वत्र किया जाता है। कन्या को विशिष्ट आसन पर बैठाकर गन्ध एवं अक्षत आदि उपचारों से इष्टदेव की भांति मंत्रोच्चारणपूर्वक भक्तिभाव से पूजा करनी चाहिए। स्त्रियः समस्तास्तव देवि ! भेदाः सिद्धान्त के अनुसार समस्त नारी महामाया की प्रतिकृति है। छोटी कन्याओं में ‘नग्निका’ अर्थात स्त्री-पुरुष भेद न जानने के कारण अपने अंगों को ढकने का बोध नहीं होता। ऐसी कन्याएं निर्विकार होने के कारण दुर्गा रूप में पूजनीय हैं।
यह तो कुमारिका पूजन के संदर्भ में पूर्णतः धर्मदृष्टि थी। इसकी सामाजिक व्याख्या के अनुसार दुधमुंही कन्या को माता क्यों कहें ? वस्तुतः कुमारिका पूजन का पहला नियम यह है कि पूजक को ज्ञान प्राप्ति के लिए ब्राह्मण कन्या का बल प्राप्ति के निमित्त क्षत्रिय कन्या का, धन प्राप्ति के लिए वैश्य कन्या का और शत्रु-विजय, मारण, मोहन तथा उच्चाटनादि अभिचार प्रधार कार्यों की सिद्धि के लिए चाण्डाल कन्या का पूजन करना चाहिए।
कन्या पूजन के नियम
कन्या पूजन करने से मां भगवती की कृपा प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि इनमें आदि शक्ति का वास होता है। कन्या पूजन के दौरान ध्यान रखें कि कन्याओं की उम्र दो से 10 साल की उम्र के बीच होनी चाहिए। इसके साथ ही एक बालक को जरूर आमंत्रित करें क्योंकि यह बालक बटुक भैरव और लागूंरा का रूप माना जाता है। आदि शक्ति की सेवा और सुरक्षा के लिए भगवान शिव ने हर शक्तिपीठ के साथ-साथ एक-एक भैरव को रखा हुआ है इसलिए देवी के साथ इनकी पूजा भी जरूरी मानी गई है। शक्तिपीठ के दर्शन के बाद अगर भैरव के दर्शन नहीं किए तो मां के दर्शन भी अधूरे माने जाते हैं।
शक्ति की स्वरूप हैं कन्याएं
शास्त्रानुसार, कन्या के जन्म का एक वर्ष बीतने का पश्चात कन्या को कुंवारी की संज्ञा दी गई है। दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन को त्रिमूर्ति, चार को कल्याणी, पांच वर्ष को रोहिणी, छह को कालिका, सात को चंडिका, आठ वर्ष को शांभवी, नौ वर्ष को दुर्गा और दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा माना गया है। नवरात्र में एक कन्या एक तरह की अव्यक्त ऊर्जा का प्रतीक होती है और उसकी पूजा से यह ऊर्जा सक्रिय हो जाती हैं। इनकी पूजा करने से सभी देवियों का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त होती है।
कन्या पूजन की विधि
- कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर दिया जाता है.
- मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है.
- गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं.
- अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए.
- उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए.
- फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं.
- भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें.
सिर्फ 9 दिन ही नहीं है जीवन भर करें इनका सम्मान
नवरात्रों में भारत में कन्याओं को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है. पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते हैं. बहूत जगह कन्याओं का शोषण होता है और उनका अपनाम किया जाता है. आज भी भारत में बहूत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है. ऐसा क्यों? क्या आप ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे हैं. कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. देवी तुल्य कन्याओं का सम्मान करें. इनका आदर करना ईश्वर की पूजा करने जितना पुण्य देता है. शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में औरत का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं.