मूलाधार चक्र – Root Chakra
मानव शरीर में सात चक्र होते हैं सबसे पहला है मूलाधार इसमें गणेश जी देवता है और देवी काली हैं । साधना में सर्वप्रथम कुंडलिनी के जाग्रत होने पर साधक को गणेश जी की शक्तियां प्राप्त होती हैं जिससे वह रिद्धि सिद्धि का स्वामी बन जाता है । शुरुआत गणेश जीसे होती है इसी कारण गणेश जी सबसे पहले पूजे जाते हैं
कुंडलिनी का कार्य
इससे सभी नाड़ियों का संचालन होता है। योग में मानव शरीर के भीतर 7 चक्रों का वर्णन किया गया है। कुंडलिनी को जब ध्यान के द्वारा जागृत किया जाता है, तब यही शक्ति जागृत होकर मस्तिष्क की ओर बढ़ते हुए शरीर के सभी चक्रों को क्रियाशील करती है। योग अभ्यास से सुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर इसे सुषम्ना में स्थित चक्रों का भेदन कराते हुए सहस्रार तक ले जाया जाता है। यह कुंडलिनी ही हमारे शरीर, भाव और विचार को प्रभावित करती है।
नाड़ीयाँ : इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों को शुद्ध करने के लिए सभी तरह के का अभ्यास करना। इनके शुद्ध होने से शरीर में स्थित 72 हजार नाड़ियाँ भी शुद्ध होने लगती हैं। कुंडलिनी जागरण में नाड़ियों का शुद्ध और पुष्ट होना है ।
मूलत: सात चक्र होते हैं
- मूलाधार
- स्वाधिष्ठान
- मणिपुर
- अनाहत
- विशुद्धि
- आज्ञा
- सहस्रार
मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति में जो चक्र स्थित होते हैं उनकी संख्या सात बताई गई है। यह जानकारी शास्त्रीय, प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक है-
मूलाधार चक्र
गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला ‘आधार चक्र’ है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। वहाँ वीरता और आनन्द भाव का निवास है ।
स्वाधिष्ठान चक्र
इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी छ: पंखुरियाँ हैं । इसके जाग्रत होने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है ।
मणिपूर चक्र
नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है । यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि कषाय-कल्मष मन में लड़ जमाये पड़े रहते हैं ।
अनाहत चक्र
हृदय स्थानमें अनाहत चक्र है । यह बारह पंखरियों वाला है । यह सोता रहे तो लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा । जागरण होने पर यह सब दुर्गुण हट जायेंगे ।
विशुद्ध चक्र
कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है
आज्ञाचक्र
भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ ‘?’ उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदिका निवास है । इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं।
सहस्रार चक्र
सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्यभाग में है । शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथियों से सम्बन्ध रैटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम का अस्तित्व है । वहाँ से जैवीय विद्युत का स्वयंभू प्रवाह उभरता है । किसी भी साधना के सफल होने का प्रतिशत साधक के शरीर के चक्रों के संतुलित होने पर निर्भर करता है । साधक को चाहिए कि वो मूलाधार से आरंभ कर सहस्त्रार तक के चक्रों का मूल मंत्र के साथ बीज मंत्र की 108 माला एक ही दिन मे करें ।
चक्र जागरण के मंत्र
- मूलाधार चक्र – ॐ लं परम तत्वाय गं ॐ फट
- स्वाधिष्ठान चक्र –ॐ वं वं स्वाधिष्ठान जाग्रय जाग्रय वं वं ॐ फट
- मणिपुर चक्र – ॐ रं जाग्रनय ह्रीम मणिपुर रं ॐ फट
- अनाहत चक्र – ॐ यं अनाहत जाग्रय जाग्रय श्रीं ॐ फट
- विशुद्ध चक्र – ॐ ऐं ह्रीं श्रीं विशुद्धय फट
- आज्ञा चक्र – ॐ हं क्षं चक्र जगरनाए कलिकाए फट
- सहस्त्रार चक्र – ॐ ह्रीं सहस्त्रार चक्र जाग्रय जाग्रय ऐं फट
चक्र जागरण के बीज मंत्र
जिनकी 108 माला करनी है ( एक दिन मे एक चक्र पर ही 108 माला करना है … मूलाधार से आरंभ करना है )
- मूलाधार – लं
- स्वाधिष्ठान- वं
- मणिपुर – रं
- अनाहत- यं
- विशुद्ध – हं
- आज्ञा – ॐ
- सहस्त्रार –ॐ
मूलाधार चक्र जागृत करने का आसान तरीक़ा
किसी एकांत स्थान पर जहाँ कोई बाधा ना डाल सके आरामदेह मुद्रा में बैठ जायें।ध्यान रहे रीढ़ सीधी हो।आँखे बंद कर लें । अगर आपने कभी ध्यान का अभ्यास नहीं किया हो तो पहले तीन से सात दिन तक अपने साँसो को देखें। सारा ध्यान साँसों पर हो। देखिए साँस आ रही है , साँस जा रही है। तीस से पंतालिस मिनट तक सिर्फ़ साँसो के आवागमन पर ही ध्यान देना है ।
इस से धीरे धीरे आपका ध्यान लगना शुरू हो जाएगा। आपका मन आपको साँसो पर ध्यान नहीं लगने देगा। आपको बिना बात की बातें याद आयेंगी और साँसो पर ध्यान को छोड़कर आप उन बातों को सोचने लग जाएगे।आपको यह करना है की उन बातों में रस नही लेना है। बस देखा की मन ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है और वापिस साँसों पर ध्यान को ले आना है ।
सात दिन के अभ्यास के बाद आपको ध्यान मूलाधार चक्र पर लगाना है जो की पहले भी बताया की रीढ़ की हड्डी के अंत में स्थित है। आँखे बंद ..सारा ध्यान मूलाधार पर और साथ में मुँह से मूलाधार चक्र के मंत्र का उच्चारण करना है ….. लम …लम …..लम। इसमें म को लम्बा खिचना है लम म्मम्मम्मम्म ।
मंत्र जाप करते वक़्त ध्यान सारा मूलाधार चक्र पर रखें।शुरू हर रोज़ कम से कम तीस मिनट करें। बाद में एक घंटे तक ले कर जायें। सुखद अनुभूति होगी और जीवन में कम ही सही पर बदलाव ज़रूर आएगा। आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा लेकिन आपको घमंड नहीं करना है। अगर घमंड किया तो वही आपको विपरीत परिणाम मिलने लग जाएगें। विपरीत परिणाम मूलाधार की वजह से नही आपके घमंड की वजह से मिलेंगे ।
आपको क्या क्या अनुभूति होगी यह मैं नही बताऊँगा क्योंकि आप फिर उसी अनुभूति की खोज में लग जाएगें। स्वयं महसूस करें की कुछ दिन के बाद आपको क्या क्या अनुभूति होती हैं। ध्यान करते वक़्त भी और सामान्य जीवन में भी।
यही था मूलाधार जागरण का आसान तरीक़ा।अगर गुरु हो तो शक्तिपात से आपके मूलाधार की प्रारम्भिक अवस्था में जागृत कर सकते हैं और फिर आप अभ्यास से आगे बढ़ते जाते हैं। बिना गुरु के समय अधिक लग जाएगा ।