चार भुजा जी राजसमंद जिले के कुम्भलगढ़ तहसील के अंतर्गत गढ़ बोर ग्राम में स्थित है जो राजस्थान प्रान्त का हिस्सा है ।
इतिहास :इसका नाम करण गढ़ यानि किला एवं इसका निर्माण बोर राजपूतो ने करवाया अतः गढ़ बोर कहलाता है एवं चारभुजाजी इसे
इसलिए कहते है क्योंकि यहाँ चारभुजा नाथ का मंदिर है इसलिए यह गांव चारभुजा के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।
तत्कालीन राजा गंग देव को स्वप्न में दर्शन हुआ की एक मूर्ति जल में मिलेगी जिसकी स्थापना वह करवा दे उसने ऐसा ही किया प्राप्त मूर्ति को गढ़ यानि किले में स्थापित करवा दी यह कार्य १४४४ ईस्वी में सम्पदित किया गया ।
ऐसा विश्वास किया जाता है की पांडवो ने अपनी अंतिम यात्रा हिमालय के प्रस्थान से पूर्व इस मूर्ति का दर्शन किया था ।
इस मंदिर एवं मूर्ति की रक्षा हेतु १२५ युद्ध हुए एवं अनेक बार मूर्ति की रक्षा के निमित्त इस श्री विग्रह को जल में सुरक्षित रखवाया गया ।
इस मंदिर की पूजा गुर्जर पुजारियों द्वारा बड़े उत्तम तरीके से सम्पादित की जाती है । गर्भ गृह के अंदर की और दरवाजों में सोने का एवं बाहर चांदी का कार्य किया हुआ है । श्री विग्रह के सम्मुख ही भगवान के वाहन गरुड़ जी विराज मान है ।
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मेला व विशेष अवसर :
भाद्र पद मास की शुक्ल एकादशी यानी जलझूलनी एकादशी को विशाल मेला लगता है, हजारो यात्री आते है एवं पास में स्थित झील में विशेष स्नान हेतु श्री भगवान की चल मूर्ति को ले जाया जाता है एवं स्नान उपरांत पुष्पों का श्रृंगार एवं इत्र का छिड़काव किया जाता है ।
होली, नव रात्र ,राम नवमी आदि दिवसों पर भी विशेष उत्सव माने जाते है ।
मंदिर :
मंदिर की दीवारो पर कांच का अद्भुत कार्य किया हुआ है, मूर्ति बड़ी आकर्षक है एवं मन को अजीब शान्ति देने वाली है ।
मंदिर स्थित ग्राम के आस पास कई स्थल है जैसे सेवंत्री ग्राम में रूप नारायण जी , कुम्भल गढ़ किला ,परसु राम महादेव , रणकपुर जैन मंदिर , कांकरोली के द्वारकाधीश एवं श्री नाथजी नाथद्वारा यह सब इस तीर्थ से ३० से ४० किलोमीटर की दूरी पर है ।
उपरोक्त सभी तीर्थ अरावली पर्वत श्रृंखला में अत्यंत प्राकृतिक छटा लिए हुए है ।